प्रिय मैं कैसे गाऊं प्रेम कविता
प्रिय मैं कैसे गाऊं प्रेम कविता मेरी भावना के स्रोत्र हैं सूखे अक्षर-अक्षर घायल है जल रही है मेरी कविता निःशब्द पड़े शब्दों से मैं कैसे गढ़ लू नई कविता प्रिय मैं कैसे गाऊं प्रेम कविता दुःख घनेरी दहका है मन जल रहा है कोमल तन रिश्ते सब बेजान पड़े हैं तेरे संग प्रेम मिलान पर मैं कैसे गढ़ लूं नयी कविता प्रिय मैं कैसे गाऊं प्रेम कविता पेट की ज्वाला से व्याकुल तन मन दरिद्रता से शोषित जन जन भूखे बच्चों को मां सुला रही उनके दर्द के आंसुओं से मैं कैसे गढ़ लू नयी कविता प्रिये मैं कैसे गाऊं प्रेम कविता चारों और हाहाकार मची है माँ बहनों की इज्जत खतरे में लुटे हु...