वह सबकी प्यारी
वह सबकी प्यारी लली थी, मैं सबका प्यारा लला था। वह बड़े ही नाजों से पली थी, मैं भी बड़े प्यार से पला था। धीरे बढ़ी गलियों में निकलने लगी, मेरे मन में वह तुलसी बन पलने लगी। देख उसको सूरज निकलने लगा, उसको ही देख शाम ढ़लने लगी। उसके घर तक ही मेरा हर रास्ता था, सारी दुनिया में उसका मुझसे वास्ता था वह थी मैं था उसका मेरा हमारा मन था महका है मन में वह जो तुलसी का उपवन था हाँ! याद है प्यार.. तुलसी का उपवन में...! सुरभित है मेरे अस्तित्व का कण-कण में...!