क्या वक्त कभी ठहरा..
दिन भारी भारी है
रात भी सहमा सहमा है
तो क्या हुआ ...
गुजर जायेगा ये लम्हा भी
क्या वक़्त कभी ठहरा है
वीरान हुई सड़कों पर
फिर से चहल पहल होगी
खो चुकी गलियारों की रौनक
फिर से गुलजार होगी
फिर से खनक उठेगी
चूड़ियों की आवाजें
मंदिर की घंटी की मधुर ध्वनि
से गूंज उठेगा देवालय
और मन में फिर से
विश्वास और आस्था भरेगी
बच्चों की खिलखिलाहट से
दमक उठेगी स्कूल की चारदिवारी
हम स्कूल चले हम स्कूल चले
का शोर गूंजेगा हर तरफ
फिर जमेंगी चौपालें
मिल बैठेंगे दोस्त यार
एक दूसरे का हाल पूँछेगे
और फिर हंसी के फव्वारे छूटेंगे
लेकिन बदल जायेगा बहुत कुछ
बदल जायेगी जीवन शैली
बहुत कुछ सीखा कर
ये वक़्त गुजर जायेगा
आज मानव बेबस है
खुद को सर्वस्य समझने वाला
आज नियति के आगे नतमस्तक है
इंसानियत संवेदना
सहनशीलता धैर्य और सेवा
ये हैं मानवता के आधार
इस राह चलकर हम
ये जंग जीत जायेंगे
हिम्मत नहीं हारना है
आशा की लौ जलाये रखना है
आने वाला कल आज से अच्छा होगा
गुजर जायेगा ये लम्हा भी
क्या वक़्त कभी ठहरा है
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