रविदास होने का अर्थ ।

रविदास होने का अर्थ 

 रविदास होने का अर्थ है,
 तलवार की नोक पर चलना, 
क्रांति की आग पैदा करना, 
हजारों वर्षों से बनी बनाई ,
मूढ़ मान्यताओं को,
 अंगूठा दिखा देना।

आज जिस युग में, 
अमृत बूंद पाने के लिए,
 पूरा देश उमड़ पड़ा हो,
क्या प्रधानमंत्री?
 क्या राष्ट्रपति?
क्या नेता ?
क्या अभिनेता?
कोई चूकना नहीं चाह रहा ,
 गंगा मैया के घाट पर ,
अमृत बूंद पीने के लिए।
सोचिए जरा,
थोड़ा रुक कर विचारे,
मन चंगा तो कठौती में गंगा,
यदि मन पवित्र है तो,
 घर में ही काशी कैलाश है, 
करोड़ों लोग,
अमृत बूंद पाना चाहते हैं,
क्या उनका मन चंगा हो गया? 
क्या उन्होंने ?
झूठ, बेईमानी, चोरी,मिलावटखोरी छोड़ दिया,
क्या यह देश ,
भ्रष्टाचार से मुक्त हो गया, 
कौन है जो?
लोगों को सिखा रहा है,
 तुम पाप करते रहो,
गंगा मैया में डुबकी लगाओ,
 पाप को काटकर ,
फिर पाप में लिप्त हो जाओ।

ऐसा चाहूं राज मैं,
जहां मिले सभै को अन्न। 
ऊंच नीच सब मिटि रहे ,
रविदास रहे प्रसन्न।
सैकड़ो वर्षों बाद भी,
आज भी जनता,
 भूखी नंगी क्यों हैं?
कब आएगा रविदास का राज-
शोषक वर्ग कब तक जनता को, अंधविश्वासों ,मूढ़ मान्यताओं में, जकड़े रखेगा।

कब जनता समझेगी -
मस्जिद से कुछ घिन्न नहि,
मंदिर से नहीं प्यार।
दोउ में अल्ला राम नहिं,
कह रैदास चमार।।

आखिर मंदिर मस्जिद में,
जनता को कब तक,
 उलझाए रखा जाएगा। 
क्यों जनता जब-
 रोटी मांगती है,
रोजगार मांगती है,
अपना अधिकार मांगतीं है,
उसे धर्म में,
उलझा दिया जाता है।

कब आएगा-
 रविदास कबीर जैसे,
 संतों का राज्य -
कब यह जनता,
अंधविश्वासों  मूढ़मान्यताओं से मुक्त होगी,
कौन है जो? 
जनता को,
हजारों वर्षों से,
मूढ़ मान्यताओं से,
निकलने नहीं दे रहा है।

महाकुंभ की अमृत बेला में,
पावन गंगा मैया के तट पर,
रैदास की जयंती पर,
आओ चले विचार करें,
क्यों हजारों वर्षों से ,
हम गुलाम रहे हैं,
लूटेरे आते गए लूटते रहे,
करोड़ों का जनसैलाब,
लुटता पिटता रहा है।
मंदिरों की अकूत संपत्ति,
क्यों हम बचा नहीं सकें,
भगवान के पवित्र विग्रह को,
क्यों खंडित होते हुए,
भगवान के भरोसे देखते रह गए।
अपने अतीत से सबक लेकर,
कब हम राष्ट्र को,
अभेद्य सुरक्षा प्रदान करेंगे।

 हमारे देश का युवा कब,
मूढताओं अंधविश्वासों से मुक्त होकर,
वैज्ञानिक प्रतिभा विकसित करेगा, 
क्यों कोई प्रतिभाशाली ?
दर-दर भटक रहा है। 
प्रतिभाशाली लोगों को,
 आज भी क्यों?
 सूखी रोटी को ,
तरसना पड़ रहा है।
भारत अपनी प्रतिभाओं को, निष्पक्ष रूप से कब पहचानेगा। 
यह यक्ष प्रश्न -
आज भी बना हुआ है।
http://youtube.com/post/UgkxnBLY2rTybBuHXfbaLTahS1xbhxGHs38W?si=9jaO_ZZJUBAERc1Z

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