बेटी अनमाेल रत्न सा...

आज दिल का कोना खाली खाली सा
   गिर रहा मेरी आंखों से आंसू मनमानी सा  
   लोग कहते हैं बेटी धन पराया सा 
   मैं कहती हूं कोई धन नहीं बेटी सा 

  बेटी है अनमोल रत्न सा  
  कड़ी धुप में शीतल छॉंव सा 
  तप्त धरा पर गिरते बूँदों सा 
  उलझन भरी जीवन के उपवन का 
  एक सुंदर मुखड़ा फूलों सा 
  गिर रहा मेरी आंखों से आंसू मनमानी सा 

  आज मेरी आंखों में नींद नहीं 
  याद आ रही कानों में घुलती 
  मिश्री सी बातें  बेटी की 
  कब माँ के आँचल से निकलकर 
  तू हो गयी इतनी बड़ी 
  दो जहां को रौशन कर रही 
  जलते दिए और बाती  सा 
  गिर रहा मेरी आँखों से आंसू मनमानी सा 

  आज मेरा घर सुना सुना सा 
  बेटी निभा रही दस्तूर ज़माने की 
  बांध प्रणय बंधन दे रही साथ साजन का 
  घर का रौनक बनकर 
  महकती रहे तू सदा खुशबू सा 
  अचल रहें अहिवात तुम्हारा 
   गंगा -यमुना जल धारा सा 
   गिर रहा मेरी आँखों से आंसू मनमानी सा 

                                                             

Comments

Popular posts from this blog

रविदास होने का अर्थ ।

पहली लोकसभा (1952) और 18वीं लोकसभा (2024) के बीच युवाओं की संख्या में कमी आने के कारण

Upsc में चयन कभी भी Business schools से नहीं हो।