पहली लोकसभा (1952) और 18वीं लोकसभा (2024) के बीच युवाओं की संख्या में कमी आने के कारण
पहली लोकसभा (1952) और 18वीं लोकसभा (2024) के बीच युवाओं की संख्या में कमी आने के कई कारण हो सकते हैं:

(1.) शुरुआती दौर में राजनीतिक अवसर अधिक**
1952 में, भारत एक नया स्वतंत्र देश था, और राजनीति में युवाओं की भागीदारी को बढ़ावा दिया गया। स्वतंत्रता संग्राम से जुड़े युवा नेता सक्रिय रूप से चुनाव लड़ रहे थे।
(2.)राजनीतिक दलों में वरिष्ठता और वंशवाद**
समय के साथ, राजनीति में वरिष्ठता और वंशवाद का प्रभाव बढ़ा, जिससे युवाओं को अवसर कम मिलने लगे। आज दलों में बड़े नेताओं के परिवारों के सदस्य ही प्रमुखता पाते हैं, जिससे स्वतंत्र युवा उम्मीदवारों के लिए जगह कम हो गई।
(3). चुनाव लड़ने की बढ़ती लागत**
1952 में चुनाव लड़ने का खर्च अपेक्षाकृत कम था, जबकि आज प्रचार, सोशल मीडिया, रैलियों और पार्टी टिकट पाने में भारी खर्च होता है। युवा उम्मीदवारों के लिए यह एक बड़ी बाधा बन गई है।
(4.)अनुभव को प्राथमिकता मिलना**
आज के मतदाता और राजनीतिक दल अनुभवी नेताओं को प्राथमिकता देते हैं। 18वीं लोकसभा में अधिक उम्र के नेताओं का बढ़ता प्रतिशत यह दर्शाता है कि अब युवाओं को अवसर मिलने में कठिनाई हो रही है।
(5.) युवाओं की अन्य क्षेत्रों में रुचि**
पहले राजनीति ही सामाजिक परिवर्तन का मुख्य माध्यम थी, लेकिन आज के युवा स्टार्टअप, कॉर्पोरेट, सामाजिक कार्यों और अंतरराष्ट्रीय संगठनों की ओर अधिक आकर्षित हो रहे हैं।
(6.)छात्र राजनीति की गिरती भूमिका**
पहले छात्र संगठनों से कई युवा नेता उभरते थे, लेकिन अब विश्वविद्यालयों में छात्र राजनीति की भूमिका कमजोर हुई है। इससे युवाओं का राजनीति में प्रवेश कठिन हो गया है।
(7).पहली लोकसभा में युवा सांसदों की अधिक संख्या का कारण तत्कालीन परिस्थितियाँ थीं, जबकि आज राजनीतिक, सामाजिक और आर्थिक कारणों से युवाओं के लिए संसद में पहुंचना कठिन हो गया है।
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