Story Of An UPSC Aspirant ( अनकही कहानी -1)
- तू तो ऐसी न थी
किसी की तस्वीरों को यू ही,
छुप कर देखता रहा हूँ
पर उनके चेहरो को देख कर,
आज यह तो भान हो गया
कि तुम भी खुश नहीं हो... आज से
तुम खुश थी..... अपने कल से
न जाने कैसी मजबूरियाँ रही होगी,
जो जिंदगी के मर जाने के बाद,
मेरी जिंदगी जा रही है,
यह बताना, गवारा तक न समझा,
गलतियां तो सिर्फ मेरी ही न थी,
इसमें साथ तो तुम्हारी भी होगी,
कोई एक बार तलक तो दूर हम न हुए थे,
तुम्हारी गलतियों पर,
दिन, महिने, साल.....तो ऐसी कटती थी तुम्हारे बगैर..
तू तो ऐसी न थी..
तुम्हारे साथ देखे सपने.... वह ऊची ऊड़ान
जो तुम्हारे बिना कभी पूरी न हो पायी
इस जन्म में,
यह तो भान था न तुम्हे.......
तुम प्रित नहीं तो सखा तो बनती...
पर किसी दूसरे की खातिर....
मुझे छोड़...... औरो का दामन थाम लिया....
याद है, मुझे मई की तपती दोपहरी का महिना..... वह शाम, जिसके दूसरे दिन.... जंग था यूपीएससी
अपनी किस्मत, अपनी मेहनत के धनुष-बाण से,
पर जंगे मैदान से लौट आया था खाली हाथ,
पता था तुम्हे, जो छूटा तुम्हारा साथ,
तो हो जाऊगा में.. बिन सारथी बिन रथ
दोष शायद तुम्हारा भी न हो,
यह दोष तो मेरा था,
पूरे महिने लगे थे मुझे
संभलने को,
अपने सपनो को पूरा करने को,
मिला साथ प्रवेश, मनिष, अनुज, शेलेष का,
बढ चला मैं अपने कुरूक्षेत्र में,
और सख्त योद्धा बनकर,
जिंदगी को नये रूप में देखकर,
पर अंतिम दोष तो तुम्हारा ही है..
इतना बैगाना बना दिया कि सारे संबंध तोड़
अपनी जाती डोली को भी देखने न दिया,
देखने का वनवास अब खत्म हुआ,
वह भी उदासी से भरे चेहरे को,
तु तो ऐसी ना थी....(क्रमशः)
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