कर्मपथ..


हे मानव! 
सजाया है धरा को
जाना है तुमने
परा अपरा को
तुमने की हैं भक्तियां
हाँ है तुममें 
अपरिमेय शक्तियां 
लगा जोर
कभी होना नहीं 
जरा भी कमजोर
राग कर्मों का
अविरल गा लो तुम
मनचाहा मंजिलें 
निर्बाध पा लो तुम
मत हार कभी
बाधाओं को
निडर मार सभी 
चल कर्मपथ पर 
चल चल अभी।
               

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