संघर्ष की कहानी

संघर्ष की चक्की चलती है
मेहनत का आटा पिसता है,
सफलता कि रोटी पकती है
और अपना सितारा चमकता है।

सहारों का उजाला हो कितना
खुशियों तक ही वो टिकता है,
मजबूरियों के फिर अंधेरों में
हिम्मत का शोला दहकता है।

मंजिल हो प्यारी जिसको
वो राहों में न कभी अटकता है,
भूल जाए जो लक्ष्य कभी
वो सारा जीवन भटकता है।

है गर्म हवाओं का डर उसको
जो मखमल में ही पलता है,
उसे अंगारों का भय क्या होगा
जो काँटों पर ही चलता है।

जब दौर है होता गर्दिश का
तो अस्तित्व कहाँ फिर बचता है,
चले जाते हैं आशियाने में पंछी
तूफ़ान में बाज ही उड़ते हैं।

स्वाभिमान जो दिल में हो
ईमान न ये फिर खिसकता है,
न राजा रहे न रंक रहे
यहाँ वक़्त भी कहाँ टिकता है।

बैसाखियाँ छोड़ बहानों की
जो हौसलों से ही चलता है,
होता है अलग वो दुनिया से
इतिहास वही फिर रचता है।

संघर्ष की चक्की चलती है
मेहनत का आटा पिसता है,
सफलता कि रोटी पकती है
और अपना सितारा चमकता है।

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