माता बच्चों की प्रथम गुरु व परिवार पाठशाला (Mother's first guru and family school)
माता बच्चे की प्रथम गुरू व परिवार बालक की प्रथम पाठशाला कहलाता है। परिवार बालक के लिए व्यवस्था और योजना बनाते है वह उसे सुरक्षा देते है, मित्रता देते है, खेलने के लिए समय और उपकरण देते है। बालक का विकास एक सतत् प्रक्रिया है जो समय तथा शिक्षा व्यवहार बालक अपने माता - पिता के साथ-साथ समय व्यतीत करते हुए सीखते हैं कहा गया है कि बालक अपना प्रथम पाठ माँ के चुम्बन और पिता के प्यार से ही सीखता है। बच्चों को सिखने कि प्रक्रिया तो गर्भ से ही शुरू हो जाती है(अभिमन्यु),वर्तमान में भी हम अपने बच्चों को अभिमन्यु सरीखे बना सकते है, इसके लिए भी पिता के साथ यदि परिवार का भी सहयोग गर्भवती माँ के अनुकूल हो, इसके लिए माताओं को भी तत्परता व सिखने की ललक दिखानी होगी. हमारे भारतवर्ष में इस प्रकार की अनेक उदाहरण वर्तमान में भी देखने को मिलता है (तथागत तुलसी) वस्तुत: परिवार बालक की प्रथम पाठशाला है। जहाँ अपने परिजनों की छाया तले बैठकर अपनी सुसुप्त क्षमता व प्रतिभा को उजागर कर...