Posts

Showing posts from May, 2020

माता बच्चों की प्रथम गुरु व परिवार पाठशाला (Mother's first guru and family school)

माता  बच्चे की  प्रथम  गुरू व परिवार बालक की  प्रथम  पाठशाला कहलाता है। परिवार बालक के लिए व्यवस्था और योजना बनाते है वह उसे सुरक्षा देते है, मित्रता देते है, खेलने के लिए समय और उपकरण देते है। बालक का विकास एक सतत् प्रक्रिया है जो समय तथा शिक्षा व्यवहार बालक अपने  माता - पिता  के साथ-साथ समय व्यतीत करते हुए सीखते हैं             कहा गया है कि बालक अपना प्रथम पाठ माँ के चुम्बन और पिता के प्यार से ही सीखता है। बच्चों को सिखने कि प्रक्रिया तो गर्भ से ही शुरू हो जाती है(अभिमन्यु),वर्तमान में भी हम अपने बच्चों को अभिमन्यु सरीखे बना सकते है,  इसके लिए भी पिता के साथ यदि परिवार का भी सहयोग गर्भवती माँ के अनुकूल हो, इसके लिए माताओं को भी तत्परता व सिखने की ललक दिखानी होगी.   हमारे भारतवर्ष में इस प्रकार की अनेक उदाहरण वर्तमान में भी देखने को मिलता है (तथागत तुलसी)           वस्तुत: परिवार बालक की प्रथम पाठशाला है। जहाँ अपने परिजनों की छाया तले बैठकर अपनी सुसुप्त क्षमता व प्रतिभा को उजागर कर...

मैकाले शिक्षा

मैकाले को यकीनन ‘ब्रिटिश-भारत’ के निर्माताओं में से एक कहा जा सकता है. वह एक इतिहासकार भी था और राजनयिक भी. यह तय है कि उसने भारतीयों को हेय दृष्टि से ही देखा. पर यह भी उतना ही सत्य है कि उसने कुछ ऐसे काम किये जो हमारी आने वाली क़ानूनी और सामाजिक प्रणाली का आधार बने. अब तक हम उसके प्रभाव से उबर नहीं पाए हैं. यह हमारी कमतरी है क्या कुछ और?औद्योगिक क्रांति के बाद पश्चिमी समाज तरक्की करते हुए बाकियों से काफी आगे निकल आये थे. पश्चिम के लोगों को अब पूर्व और अफ्रीका के समाज कमतर लगते थे. उन्हें यहां का साहित्य, दर्शन सब कुछ ही बेढंगा लगता था. मैकाले भी इस भावना से ग्रसित था. उसने एक बार कहा था कि समूचे भारतीय साहित्य की तुलना में यूरोप की किसी अच्छी लाइब्रेरी का सिर्फ एक शेल्फ़ ही काफ़ी है. इस सोच के पीछे जेम्स मिल नाम का एक ब्रिटिश अफसर था जिसने भारत आये बिना यहां का इतिहास लिखा था. जेम्स मिल भारतीयों को इतना कमतर आंकता था कि उसके मुताबिक जो कुछ भी वैज्ञानिक या गणितीय विकास यहां हुआ वह सब पश्चिम के लोगों से चुराया हुआ था. इसी अवधारणा के आधार पर उसने शिक्षा पद्धति को विकसित करने का प्रयास किया....

कोरोना काल

आयुष मंत्रालय द्वारा सेंट्रल काउंसिल फॉर रिसर्च इन होम्योपैथी ने कोरोना वायरस संक्रमण से बचाव के तरीकों और साधनों पर चर्चा की। विशेषज्ञों के समूह ने सिफारिश की है कि होमियोपैथी दवा आर्सेनिकम एल्बम 30 को कोरोनावायरस संक्रमण के खिलाफ रोगनिरोधी दवा बहुत कारगर है। तीन दिन तक लगातार खाली पेट तीन ड्राप इस्‍तेमाल करने की डाक्टरों ने सलाह दी है। डाक्टरों के अनुसार दोबारा कोरोना वायरस संक्रमण न हो इसलिए एक महीने बाद दोबारा इसकी डोज दोहरानी चाहिए। विशेषज्ञ समूह ने स्वास्थ्य और परिवार कल्याण मंत्रालय, सरकार द्वारा हवाई यात्राओं के द्वारा हो संक्रमणों की रोकथाम के लिए सामान्य स्वास्थ्य संबंधी उपाय करने की सलाह दी है।   आयुर्वेद में भी पहले भी अनादि काल से हमलोगो द्वारा काढ़े का उपयोग अपनी रोग प्रतिरोधक क्षमता को बढाने में करते आ रहे हैं. पूरे विश्व में अब भारतीय चिकित्सा पद्धति का डंका बज रहा है, जिससे हम भारतीय गौरवान्वित महसूस कर रहे हैं.  जहाँ पश्चिमी खान-पान (पिज्जा, बर्गर🍔) हमारे भारत में भी घर कर गया है, परन्तु इस कोरोना काल ने यह सिद्ध कर दिया है कि, भारतीय खान-पान, रहन-सहन सब...

शिक्षा के उद्देश्य

  शिक्षा के उदेश्यों का व्यक्ति के मानसिक तथा अध्यात्मिक विकास से घनिष्ठ सम्बन्ध है। कोई भी व्यक्ति अपने जीवन की पूर्णता को आत्म-प्रकाशन, क्षमता तथा अनुभव का निरन्तर वृद्धि होते हुए ही प्राप्त कर सकता है। व्यक्ति का यह अध्यात्मिक विकास उसी समय हो सकता है जब शिक्षा के उदेश्य उसके जीवन की बदलती हुई आवश्यकताओं के अनुसार बदलते रहें। इससे शिक्षा के उद्देश्यों तथा व्यक्ति के जीवन दोनों में समंजस्यपूर्ण सम्बन्ध बना रहेगा। यदि शिक्षा के उदेश्य व्यक्ति के जीवन की बदलती हुई आवश्यकताओं के अनुसार नहीं बदलेंगे तो व्यक्ति का मानसिक तथा अध्यात्मिक विकास असम्भव है।                           भगवान श्रीकृष्ण गीता में उद्घोष करते हैं, ‘नहि ज्ञानेन सदृशं पवित्रमिह विद्यते’ । महाभारत में कहा गया, ‘नास्ति विद्यासमं चक्षुः’ अर्थात् विद्या के समान दूसरा नेत्र नहीं है । शिक्षा का सम्बन्ध इस प्रकार सीधे जीवन से जुड़ता है । जीवन का लक्ष्य और शिक्षा का लक्ष्य एक ही है, शिक्षा व जीवन एकरस हैं । जीवन की पूर्णता के प्रकटीकरण के लिए शिक्षा ही साधन ...

देश पुकारे...

देश पुकारे अब तुझे,भारत की संतान। बिना कर्म संधान के,विपदा पड़ी महान।। आएं सब निज कर्म की,करें शीघ्र पहचान। आज आन जो दुख पड़ा,उसका करें निदान।। कर्म सुयश देता सदा,कर्म ही सुखाधार। मानें कर्म प्रधानता,करें देश को प्यार।। 

Story Of An UPSC Aspirant (अनकही कहानी -2)

        तू तो ऐसी न थी(2)  देखने का वनवास अब खत्म हुआ, वह भी उदासी से भरे चेहरे से, तु  तो ऐसी ना थी.... हाँ, मैं वन में था, तपस्या कर रहा था, इस तपस्या का भान तो तुम्हे भी था, पर तुमने खुद ही मेरा गला घोंट दिया, मारिच  बनकर, मृगतृष्णा के लिए, अपनी लालसा के लिए अपने सुख के लिए, भूला दिए वह, बचपन जिसको इतिहास बनेने से कोई नहीं रोकता, तू तो ऐसी न थी.... सबकुछ भूला दिए, वह भी एक अदद नौकरी वाले के लिए इसपर तुम्हारी भी तो रजामंदी होगी, तुमने खूशी-खुशी उसके नाम की मेहदी का वरण तो किया होगा, पर उस रंग का क्या जो हमदोनो की आत्मा पर लगा, उस महक का क्या जो आज भी मई महिने की दूपहरी में, मेरे आस-पास अपनी खुशबू बिखेरने लगता है, तू तो ऐसी न थी............ वादा तो किया था, तुमने कि साथ रहेंगे, साथ मिल बैठ कर खाएंगे नमक रोटी ही सही, परन्तु तुमने तो सबकुछ भुला कर, बेगाना बना दिया वह भी एक अदद नौकरी वाले की खातिर तौड़ा दिए सब सपने, एक बात तो है वहा भी तो मंथरा होगी जो अपने मायाजाल में फांस , तुम्हे भी बड़गलाया होगा.... तुम्हारी नी...

खाकी की दास्तान.

ले कर शपथ नाम के अपने देश की, गुमान था,मुझे अपने खाकी वेष की ना घर की फ़िक्र थी,ना ही सोचा कभी अपने बच्चो और उनके परिवेश की.... फ़िक्र मुझे थी बस अपने देश की, परवाह मुझे थी,जान से भी ज्यादा इस देश की..२ जब थी मेरे रूह और तन मन पर खाकी मेरे लहू में था राष्ट्र का नाम अभी बाकी तो क्यों हुआ यह सलूक और नाइंसाफी क्यों पैदा हुई ऐसे नज्मों की जालसाजी जिससे मिट गया मै ,,,और मिट गई मेरी कहानी....२  मै सोचा था की  खाकी में हर इंसान समान होता है क्यू कि अपने वक्त पे प्यादा भी महान होता है पर शायद सच्चाई कुछ और थी मुझे दिखाई ही कुछ और दी... गर होती ना यहां कर्मो की भी पूजा तो उसुल होता मेरे साथ भी कोई दूजा क्यू कि कल तक मै भी ड्यूटी पर था पर आज इस दुनिया में ही ना रहूं,ये कहां सोचा था। पर मेरा तो ये सौभाग्य था, और जो हुआ वो दुर्भाग्य था। मेरा खाकी मेरा अभिमान था, खाकी वर्दी पहने मैं फौलाद था क्यू कि भारत माता का औलाद था, मेरा खाकी मेरा जहान था... मेरा खाकी मेरा सम्मान था.....!               

कंस द्वारा माता देवकी के पुत्रों की हत्या

श्री रामानंद सागर जी कृत श्री कृष्णा धारावाहिक  देखकर अभी पता चला कि माता देवकी के प्रथम पुत्र का नाम कृतिमान था. कंस ने उसे सकुशल वापस कर दिया था. परन्तु नारद जी ने भगवान विष्णु जी से कहा, हे प्रभु जब कंस के हृदय में प्यार होगा तो आप कैसे इसका वध करेंगे, तुरंत प्रभु श्री हरि ने कंस के सलाहकार द्वारा कंस को सलाह देकर माता देवकी के प्रथम पुत्र सहित अन्य पुत्रों की हत्या करने का सिलसिला शुरू कर दिया.

Management skill's from Lord shiva, Lord hanuman ji

https://youtu.be/_8d9r-hTRWs Management skill's from Lord shiva, Lord hanuman ji

Relation between Dreams and bounce back

https://youtu.be/FtuetppsyeI Relation between Dreams and bounce back

Story Of An UPSC Aspirant ( अनकही कहानी -1)

तू तो ऐसी न थी   किसी की तस्वीरों को यू ही,  छुप कर देखता रहा हूँ पर उनके चेहरो को देख कर, आज यह तो भान हो गया कि तुम भी खुश नहीं हो... आज से तुम खुश थी..... अपने कल से न जाने कैसी मजबूरियाँ रही होगी, जो जिंदगी के मर जाने के बाद, मेरी जिंदगी जा रही है, यह बताना, गवारा तक न समझा, गलतियां तो सिर्फ मेरी ही न थी, इसमें साथ तो तुम्हारी भी होगी, कोई एक बार तलक तो दूर हम न हुए थे, तुम्हारी गलतियों पर, दिन, महिने, साल.....तो ऐसी कटती थी तुम्हारे बगैर.. तू तो ऐसी न थी.. तुम्हारे साथ देखे सपने.... वह ऊची ऊड़ान जो तुम्हारे बिना कभी पूरी न हो पायी  इस जन्म में, यह तो भान था न तुम्हे....... तुम प्रित नहीं तो सखा तो बनती... पर किसी दूसरे की खातिर.... मुझे छोड़...... औरो का दामन थाम लिया.... याद है, मुझे मई की तपती दोपहरी का महिना..... वह शाम, जिसके दूसरे दिन.... जंग था यूपीएससी अपनी किस्मत, अपनी मेहनत के धनुष-बाण से, पर जंगे मैदान से लौट आया था खाली हाथ, पता था तुम्हे, जो छूटा तुम्हारा साथ, तो हो जाऊगा में.. बिन सारथी बिन रथ दोष शायद तुम्हारा भी न हो...

हम कोटा के नौनिहाल

कोटा एवं अन्य जगहो में पढ़ रहे नौनिहाल बच्चा यदि कोरोना से सुरक्षित रहे पर अवसाद, डर और अकेलापन उसे खा जाएगा. समय आ गया है,अभिभावकों को अपने महत्वाकांक्षा, अपने द्वारा खुद के लिए देखे गए सपने तथा स्टेटस_सिंबल ,समाज में रूतबे को दिखाने के जिद्द को त्यागना चाहिए. अपने सपनो को पूरा करने के लिए मासूमो को कक्षा-6, कक्षा-7, कक्षा-10 में भेजते हैं और बच्चों के बचपन और #पारिवारिक_संस्कार व मूल्यों को त्यागने पर मजबूर करते हैं. फिर यही बच्चे बड़े होकर माता-पिता एवं #समाज को #त्यागते है. राज्य सरकारों को भी चाहिए अपने हठयोग को छोड़े, समस्या से बाहर निकलने का समाधान निकालना चाहिए. आगे से अपने राज्य में कोटा,दिल्ली जैसे सेंटरों को विकसित करना चाहिए.

मजदूर